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Sunday, 30 April 2017

प्रायः अध्यात्म क्षेत्र में प्रवेश करने वाला व्यक्ति धर्म-अधर्म,न्याय-अन्याय,उचित-अनुचित की ऊहापोह में पड़ा हुआ दिग्भ्रमित सा रहता है

🌻🌻🌻🌻🌻🌻
🌻***~ॐ~***🌻
🌻*श्री गुरुवे नमः*🌻
🌻*-🌷-🌷-🌷-*🌻
परम् पूज्य पापाजी ने सत्संग के दौरान बताया कि--

🌻"प्रायः अध्यात्म क्षेत्र में प्रवेश करने वाला व्यक्ति धर्म-अधर्म,न्याय-अन्याय,उचित-अनुचित की ऊहापोह में पड़ा हुआ दिग्भ्रमित सा रहता है।समाज में रास्ता बताने वालो की बहुतायत है किन्तु सही रास्ता वही बता सकता है जिसका देखा और पहुँचा हुआ हो।ईश्वर ने मनुष्य की सृष्टि की है और माया द्वारा उन्हें गतिशील बनाया है तो उन्होंने जीवो के उद्धार की व्यवस्था भी कर रखी है।वह व्यवस्था है कि मनुष्य को एक मात्र ईश्वर की शरण ग्रहण कर लेना चाहिए।ईश्वर की शरण ग्रहण करने की ललक पैदा करनी चाहिए,भाव बनाना चाहिए,इच्छा को प्रबल बनाना चाहिए एवम् इसके लिए सटीक प्रयास करना चाहिए।
इस अभीष्ट को कैसे प्राप्त करे?

इस सम्बन्ध में यह बताना आवश्यक है कि गुरु ईश्वर का साकार रूप है और उनकी शरण में जाने पर सब कार्य स्वतः होने लगते है।इस आवश्यकता की पूर्ति सन्तो की कृपा से होती है। सन्त कैसे मिलते है?सन्त प्रभु कृपा से मिलते है।यह बड़ी विलक्षण बात है कि प्रभु कृपा से सन्त मिलते है और सन्त कृपा से प्रभु मिलते है--
🌻गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुर्साक्षात परमब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः।।🌻
इसका आशय है कि गुरु ब्रह्मा विष्णु और महेश इन तीनो के प्रतिरूप स्वरूप है।गुरु की उपासना को ब्रह्म की उपासना कहा गया है।श्री भगवान निराकार है गुरु के रूप में ही उनका साकार रूप विद्यमान है।अतः सन्तों का सानिध्य प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए।उनके बताये हुए मार्ग पर चलना चाहिए"।

🌻*🌷हे परम् पूज्य गुरुदेव् --
"मिलता है सच्चा सुख,
केवल आपके चरणों में।
यह विनती है पल छिन छिन की,
रहे ध्यान आपके चरणों में।🌷*🌻
🌻*🌷परम् पूज्य गुरुदेव सब पर कृपा करे।🌷*🌻
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻(क्रमशः)🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻

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