

















एहि सम प्रिय तिन्ह के कछु नाहीं।
एहि कलिकाल न साधन दूजा,
जोग जग्य जप तप ब्रतपूजा।
रामहि सुमिरिअ गाइअ रामहि,
संतत सुनिअ राम गुन ग्रामहि।।"

🌻

(तुलसीदास जी कहते है)
इस कलिकाल में योग,यज्ञ,जप,तप,व्रत और पूजन आदि दूसरा कोई साधन नही है।बस,श्रीरामजी का ही स्मरण करना, श्रीरामजी का ही गुण गाना और निरन्तर श्री रामजी के ही गुण समूहों को सुनना चाहिए।"


















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