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Thursday, 20 April 2017

राम उपासक जे जग माहीं, एहि सम प्रिय तिन्ह के कछु नाहीं।

🌻🌻🌻🌻🌻🌻
🌻***~ॐ~***🌻
🌻*श्री गुरुवे नमः*🌻
🌻*🌷*🌷*🌷*🌻
🌻"सत पंच चौपाई"🌻 के उत्तरकाण्ड की चन्द और विशिष्ट चौपाइया प्रस्तुत है–

🌻"राम उपासक जे जग माहीं,
एहि सम प्रिय तिन्ह के कछु नाहीं।
एहि कलिकाल न साधन दूजा,
जोग जग्य जप तप ब्रतपूजा।
रामहि सुमिरिअ गाइअ रामहि,
संतत सुनिअ राम गुन ग्रामहि।।" 
🌻
🌻"जगत में जो (जितने भी )रामोपासक है,उनको तो इस रामकथा के समान कुछ भी प्रिय नही है।श्री रघुनाथ जी की कृपा से मैंने यह सुंदर और पवित्र करनेवाला चरित्र अपनी बुद्धि के अनुसार गाया है।
(तुलसीदास जी कहते है)
इस कलिकाल में योग,यज्ञ,जप,तप,व्रत और पूजन आदि दूसरा कोई साधन नही है।बस,श्रीरामजी का ही स्मरण करना, श्रीरामजी का ही गुण गाना और निरन्तर श्री रामजी के ही गुण समूहों को सुनना चाहिए।"🌻
🌻*🌷परम् पूज्य गुरुदेव सब पर कृपा करे।🌷*🌻
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻(क्रमशः)🌻🌻🌻🌻🌻

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