🌻"सत पंच चौपाई "
🌻 के उत्तरकाण्ड की अगली कड़ी प्रस्तुत है–
🌻"करनधार सद्गुरु दृढ नावा,
दुर्लभ साज सुलभ करि पावा।
मिलहि न रघुपति बिनु अनुरागा,
किए जोग तप ज्ञान बिरागा।"
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🌻"(श्री रामचंद्र जी ने गुरु,ब्राह्मण एवम् अन्य नगर वासियो से कहा मेरी बातो को सुनलो और फिर अच्छी लगे तो उसके अनुसार करो।यह मनुष्य शरीर भवसागर(से तारने)के लिए बेड़ा(जहाज)है।मेरी कृपा ही अनुकूल वायु है।)
"सद्गुरु इस मजबूत जहाज के कर्णधार(खेनेवाले)है।इस प्रकार दुर्लभ (कठिनता से मिलनेवाले)साधन सुलभ होकर (भगवत्कृपा से सहज ही)उसे प्राप्त प्राप्त हो गए है।
(जब गरुण जी को श्री रामजी को नागपाश में बंधा देखकर तथा फिर उनके बन्धन काटने के पश्चात उन्हें सन्देह हो जाता है ।ब्रह्मा जी के पास पहुँचते है ,वे उन्हें शिवजी के पास भेजते है।तब भगवान शंकर उन्हें कहते है सत्संग के बिना हरिकथा सुनने को नही मिलती,उसके बिना मोह नही जाता और मोह गए बिना श्री रामचन्द्र जी के चरणों में दृढ़ प्रेम नही होता।आगे कहते है)
"बिना प्रेम के केवल योग,तप ,ज्ञान और वैराग्य आदि के करने से श्री रघुनाथ जी नही मिलते।(अतएव तुम सत्संग के लिए जाओ)।"
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🌻"परम् पूज्य पापाजी को "रामचरितमानस" का उत्तरकाण्ड अत्यंत प्रिय था।वे प्रायः उत्तरकाण्ड का पाठ करवाते थे।इन दो चौपाइयों के बारे में बताते हुए कहते थे कि "स्वयम भगवान राम ने सद्गुरु की महिमा बताई है तथा दूसरी चौपाई में सत्संग के महत्व का वर्णन किया गया है।अतः मनुष्य शरीर प्राप्त हुआ है तो सद्गुरु की शरण में जाकर जीवन के दुर्लभ लक्ष्य को सुगमता से प्राप्त किया जा सकता है।सत्संग के द्वारा मन शांत होकर सत्य के चिंतन में लगता है।जिससे वह जीवन के लक्ष्य की ओर उन्मुख होने लगता है।"
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