

















भव बन्धन काटहि नर ग्यानी।
राम नाम बिनु गिरा न सोहा,
देखु बिचारि त्यागि मद मोहा।।"

🌻



(उनका दूत कही बन्धन में आ सकता है?किन्तु प्रभु के कार्य के लिए हनुमानजी ने स्वयम अपने को बंधा लिया)।
(आगे हनुमानजी रावण को समझाते हुए कहते है)


(मोह ही जिसका मूल है ऐसे (अज्ञानजनित),बहुत पीड़ा देने वाले,तमरूप अभिमान का त्याग कर दो और रघुकुल के स्वामी,कृपा के समुद्र भगवान श्री रामचन्द्र जी का भजन करो)।"


















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