🌻"सत पंच चौपाई"
🌻के अरण्यकाण्ड की अगली प्रस्तुति–
🌻"मोरे जिय भरोस दृढ नाही,
भगति विरति न ग्यान मन माही।
नहि सत्संग जोग जप जापा,
नहि दृढ चरन कमल अनुरागा।
एक बानि करुनानिधान की,
सो प्रिय जाकें गति न आन की।"
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🌻"(मुनि अगस्त्य के एक सुतीक्ष्ण शिष्य थे।वे मन वचन कर्म से श्री रामजी के चरणों के सेवक थे,उन्हें स्वप्न में भी किसी और देवता पर भरोसा नही था।ज्यो ही उन्हें प्रभु आगमन का समाचार मिला,वे आतुरता से यह सोचते हुए कि क्या दीनबन्धु रघुनाथ जी मुझ दुष्ट पर दया करेंगे ,दौड़ पड़े)–मेरे हृदय में दृढ विश्वास नही होता;क्योकि मेरे मन में भक्ति,वैराग्य या ज्ञान कुछ भी नही है।मैने न तो सत्संग ,योग,जप अथवा यज्ञ किये है और न प्रभु के चरण कमलो में मेरा दृढ अनुराग ही है।हाँ दया के भण्डार प्रभु की एक बान है कि जिसे किसी दूसरे का सहारा नही है,वह उन्हें प्रिय होता है।"
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🌻"इस सम्बन्ध में पूज्य पापाजी भी यही कहा करते थे कि"अपने गुरुदेव में भाव पूर्ण समर्पण है तो विश्वास रखो वे हर तरह से कल्याण करेंगे,जब भक्त को केवल अपने गुरुदेव के अतिरिक्त और कुछ नही दिखता तब भक्त की सारी जिम्मेदारी गुरु महाराज की हो जाती है।जैसा कि कहा गया है–
"एकहि साधे सब सधे "
अतः भक्त/शिष्य को पूर्ण श्रद्धा एवम् विश्वास के साथ अपनी साधना करते रहना चाहिए।"
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