🌻"सत पंच चौपाई "
🌻 के अरण्यकाण्ड की अगली प्रस्तुति–
🌻"संत चरन पंकज अति प्रेमा,
मन क्रम बचन भजन दृढ नेमा।
गुरु पितु मातु बन्धु पति देवा,
सब मोहि कहं जानै दृढ सेवा।।"
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🌻"(श्री रामजी भक्ति के बारे में विस्तार से बताते हुए लक्ष्मणजी से कहते है)जिसका सन्तों के चरणकमलों में अत्यंत प्रेम हो;मन,वचन और कर्म से भजन का दृढ नियम हो और जो मुझको ही गुरु,पिता,माता,भाई,पति और देवता सब कुछ जाने और सेवा में दृढ हो।(काम,मद और दम्भ आदि जिसमे न हो,हे भाई!मै सदा उसके वश मेँ रहता हूँ।
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🌻"इस सम्बन्ध में परम् पूज्य पापाजी गुरु शिष्य के बारे में बताते हुए यह चौपाई कहा करते थे कि–
🌻"एकहि धर्म एक व्रत नेमा,
काय वचन मन पति पद प्रेमा।
अर्थात जिस तरह सती स्त्री का एक ही धर्म ,व्रत और नियम है ,मन वचन कर्म से पति की सेवा,ठीक उसी प्रकार शिष्य का एक ही धर्म ,एक ही व्रत और एक ही नियम है शरीर से ,मन से एवम् वचन से उसका अपने गुरु के चरणों में अनन्य प्रेम हो।"
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