

















जानउँ नहि कछु भजन उपाई।
सेवक सुत पति मातु भरोसे,
रहइ असोच बनई प्रभु पोसे।।"

🌻

"उस पर हे रघुबीर!मै आपकी दुहाई(शपथ)करके कहता हूँ कि मै भजन साधन कुछ नही जानता।सेवक स्वामी के और पुत्र माता के भरोसे निश्चिंत रहता है।प्रभु को सेवक का पालन पोषण करते ही बनता है (करना ही पड़ता है)
(ऐसा कहकर हनुमान जी प्रभु के चरणों पर गिर पड़े।श्री रामजी ने उन्हें उठाकर अपने हृदय से लगा लिया।फिर कहा हे कपि!सुनो मन में ग्लानि मत मानना।सब मुझे समदर्शी कहते है पर मुझे सेवक प्रिय है क्योकि मुझे छोड़कर उसका कोई दूसरा सहारा नही होता।)"


















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