🌻"सत पंच चौपाई"🌻के किष्किन्धाकाण्ड की प्रथम कड़ी प्रस्तुत है–
🌻"जदपि नाथ बहु अवगुन मोरे, सेवक प्रभुहि परै जनि मोरे। नाथ जीव तब माया मोहा, सो निस्तरइ तुम्हारेहि छोहा।"
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🌻"श्री हनुमानजी अपने प्रभु श्री रामजी से कहते है)हे नाथ! यद्यपि मुझमे बहुत से अवगुण है,तथापि सेवक स्वामी की विस्मृति में न पड़े(आप उसे न भूल जायँ)
हे नाथ! जीव आपकी माया से मोहित है।वह आपही की कृपा से निस्तार पा सकता है।(सेवक स्वामी के भरोसे निश्चिन्त रहता है,प्रभु को अपने सेवक का पालन पोषण करना ही पड़ता है)🌷🌻
🌻*🌷परम् पूज्य गुरुदेव सब पर कृपा करे।🌷*🌻 🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
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