🌻"सत पंच चौपाई"
🌻के अरण्यकाण्ड की प्रथम कड़ी प्रस्तुत है–
🌻"निज कृत कर्म जनित फल पायउँ,
अब प्रभु पाहि सरन तकि आयउँ।
नाथ सकल साधन मै हीना,
कीन्ही कृपा जानि जन दीना।
🌻"(श्री रामचन्द्र जी और श्री सीताजी स्फटिक शिला पर बैठे थे।तभी देवराज इंद्र के पुत्र जयंत कौए का रूप रखकर भगवान के बल की परीक्षा हेतु सीताजी के चरणों में चोंच मारकर भागा।तब रघुनाथ जी ने धनुष पर सींक(सरकण्डे)का बाण सन्धान किया।वह भागते हुए ब्रह्मलोक शिवलोक एवम् सभी लोको में भय और शोक से व्याकुल भागता रहा।फिर नारदजी के समझाने पर वह श्री रामजी की शरण में गया।उनसे प्रार्थना की कि शरणागत के हितकारी,दयालु रघुनाथ जी रक्षा कीजिये।उस जयंत रूपी कौवे ने कहा)
🌻"अपने किये हुए कर्म से उत्पन्न हुआ फल मैंने पा लिया।अब हे प्रभु!मेरी रक्षा कीजिये।मै आपकी शरण तककर आया हूँ।
(श्री रामचन्द्र जी शरभंग ऋषि से मिलते है उनके दर्शन पाकर ऋषि कहते है)
🌻!हे नाथ!मै सब साधनो से हीन हूँ।आपने अपना दीन सेवक जानकर मुझ पर कृपा की है।"
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🌻"परम् पूज्य पापाजी की प्रिय चौपाइयों में से एक है–
"नाथ सकल साधन मै हीना,
कीन्ही कृपा जानि जन दीना।
इस चौपाई के बारे में बताते हुए वे कहते थे कि"अपने गुरुदेव के समक्ष यह भाव होना चाहिए कि न मेरे अंदर भक्ति है,न शक्ति है,तमाम अवगुण भरे पड़े है अर्थात मै सभी साधनो से विहीन हूँ फिर भी आपने(गुरुदेव)मुझे दीन हीन जानकर मुझ पर कृपा की जो मुझे आपकी शरण मिली।अब मुझे विश्वास है कि आप हर तरह से मेरा कल्याण करेंगे।"
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