














परम् पूज्य पापाजी ने सत्संग के दौरान बताया कि--
"प्रत्येक को इस बात पर गौर करना चाहिए कि मानव शरीर बड़ी मुश्किल से मिलता है।आज लोग सांसारिक चकाचौंध में फस कर रह जाते है।वे केवल भौतिक उपलब्धियों को ही जीवन का वास्तविक सत्य और लक्ष्य समझते है।कही धन,वैभव और प्रतिष्ठा को,कही सांसारिक उपलब्धियों के रूप में मानव जीवन के लक्ष्य को निर्धारित कर लेते है जबकि मनुष्य जीवन का लक्ष्य तो इन सबसे बहुत ऊपर है।यदि इस जीवन का सही उपयोग करना चाहते हो तो आत्म परिष्कार कर आध्यात्मिक मार्ग पर चलने का प्रयास करो।इस सम्बन्ध में परम् पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी महाराज ने जो कर्तव्य पालन एवम् सदाचार का अत्यंत सरल एवम् सहज मार्ग बताया है उस पर यदि गुरुदेव में पूर्ण श्रद्धा विश्वास एवम् समर्पण के साथ चला जाये तो मनुष्य सुगमता से जीवन लक्ष्य की ओर उन्मुख हो सकता है।इस सम्बन्ध में परम् पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी महाराज ने अपने अमृत वचनो में कहा है कि-"भगवान के भक्त माया के आधीन नही होते ,माया स्वयम उनके आगे हाथ जोडकर खड़ी रहती है लेकिन उन्हें उसकी ओर देखने का अवकाश नही मिलता।"यहाँ पर पूज्य गुरुदेव के वचनो से यह स्पष्ट है कि सांसारिक कर्तव्य तो करना चाहिए और सफलता के लिए ईमानदारी से पूरा प्रयास भी करना चाहिए ,लेकिन इसी को जीवन का लक्ष्य नही मानना चाहिए,जीवन का लक्ष्य आत्म परिष्कार कर पूर्णता को प्राप्त करना है।मनुष्य देह के बारे में रामचरितमानस में कहा गया है-
"बड़े भाग मानुष तन पावा,
सुर दुर्लभ सब ग्रन्थहि गावा।"
अर्थात सभी गर्न्थो में यह कहा गया है कि देवताओ को भी दुर्लभ यह मनुष्य देह बड़े भाग्य से ही मिलती है।अतः अपने जीवन को सही दिशा की ओर मोड़ने का सतत प्रयास करना चाहिए।"****************


"यह गुन साधन ते नहि होइ,
तुम्हरी कृपा पाय कोइ कोई।"













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