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Monday, 20 February 2017

श्री चच्चा जी महाराज सूफी सन्त थे।सूफी सन्त की आधारशिला ही प्रेम है

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🌻***~ॐ~***🌻
🌻*श्री गुरुवे नमः*🌻
🌻*-🌷-🌷-🌷-* 

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परम् पूज्य गुरुदेव् श्री चच्चा जी महाराज के बारे में बताते हुए पापाजी कहते थे कि–


"श्री चच्चा जी महाराज सूफी सन्त थे।सूफी सन्त की आधारशिला ही प्रेम है।प्रेम एक ऐसी साधना है जिसमे मानव के आत्मचेतन एवम् सत्य के अन्वेषण की मात्रा को भावात्मक स्तर पर पूर्णता प्रदान की है।प्रेम मानव प्रकृति का एक अमूल्य तत्व है।प्रेम और परमात्मा एक ही के दो नाम है।जिसके अन्तःकरण में प्रेम भक्ति का अमृतकलश छलकता है वहाँ साक्षात् ईश्वर विराजमान होते है ,दूसरे शब्दों में निष्काम प्रेम ही भक्ति है।आध्यात्मिक क्षेत्र में जहाँ कही भी भक्ति का प्रयोग हुआ है उसका अर्थ वस्तुतः प्रेम ही है।प्रेम की पराकाष्ठा ही समर्पण है।भक्ति में तन्मयता होती है,आवेश होता है,लगन होती है,प्रेम में विकलता होती है तथा अपने प्रेमी में घुल जाने की उत्कंठा होती है।वह स्वयम को भूल जाता है और अंततः उसका परिणाम मन प्राण और बुद्धि से समर्पण में निकलता है।अतः समर्पण वह प्रखर पराक्रम है जिसमे अपनी क्षुद्रता संकीर्णता एवम् स्वार्थ को पूरी तरह से त्यागकर अपने आराध्य अपने प्रेमी एवम् परमसत्ता की दिव्यता महानता में एक हो जाना है।इसलिए जहाँ कही भी इस प्रकार का समर्पण होता है वहाँ प्रेम से उठकर अंतिम पड़ाव महाप्रेम ईश्वर में ठहरता है।वह परमसत्ता प्रेम ही है उसकी प्राप्ति अपने अंदर प्रेम तत्व का विकास करके ही हो सकती है।इस सन्दर्भ में जो अपने भीतर इस तत्व का जितना विकास कर सके ,समझना चाहिए वह भगवदसत्ता के उतने सन्निकट पहुँचा है।स्वयम के सकारात्मक प्रयास एवम् गुरुदेव की कृपा से सब सम्भव हो जाता है।"



🌻*जैसा कि कहा गया है–
"हरि व्यापक सर्वत्र समाना ,
प्रेम से प्रगट होहि मै जाना।
🌻*🌷परम् पूज्य गुरुदेव सब पर कृपा करे।🌷*🌻
🌹🌹🌹🌹🌹🌹(क्रमशः)🌹🌹🌹🌹🌹🌹

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