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Tuesday, 14 February 2017

आध्यात्मिक विकास का मूल मन्त्र एवम् आधारशिला "भाव" है ।

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🌻🌻🌻*~ॐ~*🌻🌻🌻
🌻🌻*श्री गुरुवे नमः*🌻🌻
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🌻"परम् पूज्य गुरुदेव चच्चा जी महाराज के द्वितीय पुत्र एवम् परम् भक्त पापा जी कहते थे कि आध्यात्मिक विकास का मूल मन्त्र एवम् आधारशिला "भाव" है । भावो की पवित्रता मानसिक शुद्धि से आती है और उसके बिना सुख शांति सम्भव नही है,मानसिक सन्तोष प्राप्त करने के लिए विचारो और भावो को पवित्र रखना होगा ।अपनी शुचिता के लिए आत्मनिरीक्षण आवश्यक है ।मन की शुद्धि के लिए कुछ महत्वपूर्ण उपाय निम्न प्रकार है -

1,शुद्ध आहार ,2,ईश्वरोपासना ,
3,कर्तव्य पालन,4,परोपकार 

 
अतः हमे नियमपूर्वक एकांत में बैठकर कुछ समय आत्मनिरीक्षण के लिए देना चाहिये ।हमको यह देखना है हमने क्या भोजन किया,दैनिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा ,किस तरह के विचार आये,पूजा में क्या हालत रही,दिन भर क्या गलतियाँ की और अपने कर्तव्य का किस सीमा तक पालन किया ऐसा करने में क्या त्रुटिया हुई ।दिन भर की पूरी स्थिति की समीक्षा करनी है,फिर उसके लिए प्रायश्चित करना एवम् ईश्वर से प्रार्थना करना कि हमसे जो त्रुटिया हुई है उनको वह क्षमा करें एवम् मेरे ऊपर निगरानी रखे ताकि वह त्रुटिया दुबारा न हो ।यह क्रिया रात को सोते समय और प्रातः उठने पर करनी होगी।
आत्मनिरीक्षण से प्राणी को आत्मशुद्धि का बीज मन्त्र प्राप्त होता है और निरन्तर अभ्यास करते करते नए स्वर्ण की भांति अपने मन को शुद्ध कर लेता है ।"🌻


🌻*🌷परम् पूज्य गुरुदेव सब पर कृपा करे।🌷*🌻
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻(क्रमशः)🌻🌻🌻🌻🌻🌻
क्रमशः ........

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