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परम् पूज्य पापाजी सदैव अपने पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी महाराज के बताये हुए मार्ग पर चलते हुए उन्ही के ध्यान में लीन रहते हुए लोगो का मार्गदर्शन करते रहे।सत्संग के दौरान रामचरितमानस एवम् भगवद्गीता का पाठ कराते एवम् इसके गूढ़ तत्वों को समझाते रहते थे।
इसी परिप्रेक्ष्य में वे रामचरितमानस के निम्नांकित छंद को बड़े भाव से पढ़ते एवम् प्रार्थना के लिए बताया करते थे।प्रस्तुत है छंद की कुछ पंक्तिया--



देव यह बर मांगही।
मन वचन कर्म बिकार तजि,
तव चरन हम अनुरागही।।"






























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