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परम् पूज्य श्री कृष्ण दयाल जी (पापाजी) ने सत्संग के पश्चात आध्यात्मिक चर्चा करते हुए बताया कि
"प्रत्येक मनुष्य को गम्भीरता से विचार करना चाहिए कि उसके जीवन का चरम लक्ष्य क्या है ? क्योकि
'बड़े भाग मानुष तन पावा ,
सुर दुर्लभ सब ग्रन्थन्हि गावा ।
देवताओ को भी दुर्लभ यह मानव शरीर ,साधना का धाम और मोक्ष का द्वार है ,ऐसा सभी ग्रन्थो में कहा गया है।परमात्मा ने प्रत्येक मनुष्य को इस शरीर में कुछ अलौकिक शक्तियो के साथ इस संसार में भेजा है ।जिसका उचित उपयोग करके प्रत्येक मनुष्य पूर्ण पुरुष बन सकता है ।इसको समझाते हुए उन्होंने बताया की दोनों हाथो से दूसरो की भलाई करना ।पैरो से दूसरो की भलाई के लिए ,कैसा भी कष्ट हो,सह लेना ।दोनों आँखों से दूसरो के गुण देखना एवम् अपने इष्टदेव के दर्शन करना ।कानो से सन्त महात्माओ के उपदेश सुनना व उन बातो पर चिंतन व् मनन करना ।जुबान से किसी के दिल दुखाने वाले शब्दों का प्रयोग कभी न करना ।इसके अतिरिक्त मन ,बुद्धि ,काम ,क्रोध,लोभ एवम् अहंकार के साथ प्रेम दया करुणा जैसे सद्गुण भी ईश्वर ने प्रदान किये है।इन सबका उचित प्रयोग करना ।और इस के साथ ईश्वर स्वयम सद्गुरु के रूप में उचित मार्ग दर्शन के लिए हमारे साथ है।यह सब उसकी विशेष कृपा है।जब हम कुछ न कर सके तो सद्गुरु ,जो ईश्वर स्वरूप है उनकी शरण में जाये और अपने समर्थ सदगुरु की आज्ञा का पालन पूरी निष्ठा एवम् समर्पण के साथ
करे ।"

















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