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Tuesday, 28 February 2017

परम् पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी महाराज का रामचरितमानस अत्यंत प्रिय ग्रन्थ था।

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🌻***~ॐ~***🌻
🌻*श्री गुरुवे नमः*🌻
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🌻"परम् पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी महाराज का रामचरितमानस अत्यंत प्रिय ग्रन्थ था।भगवान राम का आदर्श जीवन प्रत्येक के लिए प्रेरणास्त्रोत है।इसके निरन्तर पाठ से लोगो के मन में कर्तव्य पालन एवम् सदाचार के गुण विकसित होते है।समाज में लोगो के नैतिक उत्थान के उद्देश्य से परम् पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी महाराज ने रामचरितमानस की कुछ विशिष्ट चौपाइयों को श्रृंखला बद्ध करवा के "सत पंच चौपाई" की रचना कराई, जिससे समयाभाव के कारण एवम् विशेष परिस्थितिवश जो लोग रामचरितमानस का पूरा पाठ नही कर पाते है उन्हें इस सत पंच चौपाई का भाव से पाठ करने पर वही लाभ होगा जो कि" रामचरित मानस"के सम्पूर्ण पाठ से होता है।परम् पूज्य पापाजी भी विशेष परिस्थितयो में "सत पञ्च चौपाई"का पाठ करवाते थे।आज से इस दुर्लभ सत पञ्च चौपाई की व्याख्या सहित श्रृंखला प्रस्तुत की जा रही है, जिससे परम् पूज्य गुरुदेव के शिष्य एवम् अन्य जिज्ञासु लोग लाभान्वित हो सके।"🌻

"सत पंच चौपाई" के पाठ के बारे में बताते हुए पूज्य पापाजी ने बताया कि इसके पहले सम्पुट प्रारम्भ में तीन बार तथा प्रत्येक कांड के पहले तीन बार लगाकर इसका पाठ करे तथा समाप्ति पर पुनः तीन बार सम्पुट पढ़ कर समापन करे।


१ मार्च से इस विशेष 🌻"सत पंच चौपाई"🌻की श्रृंखला प्रस्तुत की जायेगी।

🌻*🌷परम् पूज्य गुरुदेव सब पर कृपा करे।🌷*🌻
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻(क्रमशः)🌻🌻🌻🌻🌻🌻

Monday, 27 February 2017

परमात्मा के सतत चिंतन एवम् अनासक्त भाव से किये गए कर्मो द्वारा मन को नियंत्रित किया जाता है।

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🌻*श्री गुरुवे नमः*🌻
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परम् पूज्य पापाजी ने 'कर्म के महत्व' के बारे में बताते हुए कहा कि–

"परमात्मा के सतत चिंतन एवम् अनासक्त भाव से किये गए कर्मो द्वारा मन को नियंत्रित किया जाता है।निष्काम कर्म के आचरण से मनुष्य का अन्तःकरण नितांत निर्मल हो जाता है और साक्षात् भगवत्प्राप्ति हेतु अनुभूति ज्ञान का पवित्र स्थल बन जाता है।ऐसा कर्म मनुष्य को आसक्त नही करता है न वह उसमे संलिप्त होता है।कर्तापन कर्म को दूषित करता है।मै और मेरा से अहंकार झलकता है।कार्य की सफलता का श्रेय स्वयम लेना तथा असफलता का दोष औरो पर मढ़ना अहंकार है।यह
कर्म बन्धन का कारण बनता है और यही भविष्य में सौभाग्य एवम् दुर्भाग्य का सूचक है।अतः छोटे से लेकर बड़े सभी कार्यो को ईश्वर को अर्पित करना चाहिए।निष्काम कर्म में दोष नही होता।साधक को कर्म का त्याग नही करना है वरन कर्मफल की इच्छा का त्याग करना चाहिए।यह कार्य कठिन लगता है किन्तु निरन्तर अभ्यास द्वारा आचरण में उतारा जा सकता है,तब धीरे धीरे साधक के अंदर पात्रता विकसित होती है।"


🌻*🌷*परम् पूज्य गुरुदेव हम सबको कर्तव्य मार्ग पर चलने की शक्ति एवम् सामर्थ्य प्रदान करने की कृपा करे।
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