'इस सम्बन्ध में बताते हुए कहा कि– 🌻"साधक को ध्यान रखना चाहिए कि तन से,मन और वाणी से किसी की बुराई न हो। 🌻इस तन,मन,वाणी एवम् कर्म से अगर किसी का अहित न हो तो यह विश्व की सेवा हो जाती है। 🌻यथाशक्ति किसी के काम आना,किसी की भलाई करना यह समाज की सेवा हो गयी और उसके फल की इच्छा छोड़ दी तो अपनी सेवा हो गयी,तत्पश्चात आत्म सन्तोष भी मिलेगा तथा शांति और भगवद्ज्ञान भी मिलेगा। 🌻स्वार्थ रहित,लोभरहित तथा कामनारहित होकर दूसरो की भलाई के लिए काम करने से साधक के अंदर ईश्वरीय गुण विकसित होते है जो शक्ति का काम करते है। 🌻आपकी सेवा कितनी ही छोटी क्यों न हो,निस्वार्थ भाव से वह किसी के हित में है तो अवश्य ही भक्ति की श्रेणी में पहुँच जाती है अन्यथा वह आसक्ति का रूप ग्रहण कर लेगी। 🌻अतः माता पिता हो,दुखी बन्धु बान्धव हो,साधू सन्त हो,परमेश्वर समझ कर उनकी सेवा करो।"🌻
🌻*🌷*परम् पूज्य गुरुदेव सब पर कृपा करे। 🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻(क्रमशः)🌻🌻🌻🌻🌻🌻
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