
















कार्य की सफलता का श्रेय स्वयम लेना तथा असफलता का दोष औरो पर मढ़ना अहंकार है।यह कर्म बन्धन का कारण बनता है और यही भविष्य में सौभाग्य एवम् दुर्भाग्य का सूचक है।
अतः छोटे से लेकर बड़े सभी कार्यो को ईश्वर को अर्पित करना चाहिए।निष्काम कर्म में दोष नही होता।। साधक को कर्म का त्याग नही करना है वरन कर्मफल की इच्छा का त्याग करना चाहिए।यह कार्य कठिन लगता है किन्तु निरन्तर अभ्यास द्वारा आचरण में उतारा जा सकता है,तब धीरे धीरे साधक के अंदर पात्रता विकसित होती है।"



















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