
















अतः उन्होंने अपने उपदेशो में सदाचार एवम् कर्तव्य पालन पर विशेष बल दिया उनके उपदेश आज भी उतने ही प्रासंगिक है।
इस विषय पर उन्ही के द्वारा निर्धारित नियमो का कई पुस्तको में उल्लेख किया गया है।देखने और पढ़ने में यह छोटी छोटी बाते लगती है किन्तु उनके अनवरत अभ्यास से मनुष्य का आमूल परिवर्तन होकर स्वतः उसका आध्यात्मिकता को प्राप्त होना सुनिश्चित है।
संक्षेप में मै यह कहना चाहूँगा कि अध्यात्म और सद्व्यवहार दोनों ही एक दूसरे के पूरक है।एक के अभाव में दूसरे की उन्नति बाधक है।दोनों के सम्पूर्ण सहयोग से ही आदर्श प्रस्तुत किया जा सकता है।
आज के बदलते हुए परिवेश में सभी सन्तों से मेरा विनम्र निवेदन है कि वे समाज के सही मार्गदर्शन के लिए आगे आये जिससे वास्तविक रूप से लोगो का कल्याण हो सके।


















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