
















साधक को यह भी ध्यान रखना आवश्यकहै।अध्यात्म का एक सुनिश्चित उद्देश्य है आत्म निर्माण और आत्म परिष्कार।यह दोनों ही मन की सन्कल्प शक्ति पर निर्भर करते है।साधक को अपने अंदर सदप्रवृत्तिया विकसित करनी है उन्ही के प्रबल परिष्कृत होने पर व्यक्तित्व में अगणित विशेषताये उत्पन्न हो जाती है,जो प्रसुप्त पड़ी रहती है और हर किसी में बीज रूप में विद्यमान रहती है।यदि उन्हें प्रखर सक्रिय बनाया जा सके तो आंतरिक विशेषताए समुन्नत होते ही सफलताए खिची चली आती है।ब्रह्माण्ड में ईश्वरीय चेतना असीम मात्रा में भरी पड़ी है पर उससे सम्पर्क साधने के लिए स्वयम को एक स्तर तक परिष्कृत करना होगा।


















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