
















मनुष्य सुविकसित चेतन सत्ता का स्वामी इसलिए माना जाता है कि उसकी सन्कल्प शक्ति अधिक सक्रिय है।सन्कल्प शक्ति ही साधक को अंधकार से प्रकाश की ओर मृत्यु से अमरत्व की ओर ले जाती है।
अतः साधना की प्रगति का मुख्य आधार मन का सन्कल्प ही है,मन की उपेक्षा कर साधना सम्भव नही हो सकती।जो मन के इस महत्व की भुलाकर अनिश्चित मन से साधना मार्ग में प्रविष्ट होते है वे चाहे शारीरिक दृष्टि से कितनी कठोर तपस्या व्रत उपवास कर ले किन्तु पूर्ण सफलता नही प्राप्त कर सकते,वे शारीरिक स्तर के ही थोड़े बहुत लाभ प्राप्त कर सकेंगे।
ऐसी स्थिति में सफलता न मिलने पर साधनक्रम में दोष देने वाले लोग भी मिलते है।अतः प्रत्येक साधक को यह ध्यान रखना चाहिए कि साधना का आरम्भ मन से होता है तन से नही।


मोहि कपट छल छिद्र न भावा।"

🌻


🌻


















No comments:
Post a Comment