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Saturday, 27 May 2017

आध्यात्मिक साधना के क्षेत्र में मन की अहम भूमिका होती है

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🌻***~ॐ~***🌻
🌻*श्री गुरुवे नमः*🌻
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🌻"परम् पूज्य पापाजी ने "मन के नियंत्रण" के बारे में चर्चा करते हुए सत्संग के दौरान बताया कि–

🌻"आध्यात्मिक साधना के क्षेत्र में मन की अहम भूमिका होती है। निष्ठापूर्ण मन ही साधना में सिद्धि दिलाता है।
मनुष्य सुविकसित चेतन सत्ता का स्वामी इसलिए माना जाता है कि उसकी सन्कल्प शक्ति अधिक सक्रिय है।सन्कल्प शक्ति ही साधक को अंधकार से प्रकाश की ओर मृत्यु से अमरत्व की ओर ले जाती है।
अतः साधना की प्रगति का मुख्य आधार मन का सन्कल्प ही है,मन की उपेक्षा कर साधना सम्भव नही हो सकती।जो मन के इस महत्व की भुलाकर अनिश्चित मन से साधना मार्ग में प्रविष्ट होते है वे चाहे शारीरिक दृष्टि से कितनी कठोर तपस्या व्रत उपवास कर ले किन्तु पूर्ण सफलता नही प्राप्त कर सकते,वे शारीरिक स्तर के ही थोड़े बहुत लाभ प्राप्त कर सकेंगे।
ऐसी स्थिति में सफलता न मिलने पर साधनक्रम में दोष देने वाले लोग भी मिलते है।अतः प्रत्येक साधक को यह ध्यान रखना चाहिए कि साधना का आरम्भ मन से होता है तन से नही।

🌻जैसा कि रामचरितमानस में कहा गया है–

🌻" निर्मल मन जन सो मोहि भावा,
मोहि कपट छल छिद्र न भावा।" 
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🌻"भगवान कहते है जो छल कपट छोड़ कर निर्मल मन वाले है वही मनुष्य मुझे प्रिय है अर्थात वे आध्यात्मिक मार्ग पर सुगमता से चलने वाले है।" 
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🌻*🌷परम् पूज्य गुरुदेव सब पर कृपा करे।🌷*🌻
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻(क्रमशः)🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻

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