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"सदाचार द्वारा मनुष्य का मन अत्यंत निर्मल हो जाता है और वह अत्यंत उदारता के साथ न केवल कुटुंब, जाति,और समाज की बल्कि पूरे विश्व के कल्याण के लिए प्रयत्नशील रहता है।निस्वार्थ सेवा से उसका चित्त आनन्द से सराबोर रहता है।सदाचारी की स्वयम की सारी व्यथाये समाप्त हो जाती है।आत्मा को शांति मिलती है।अंत में वह परम् पद को प्राप्त होता है। अगर सम्पूर्ण अध्यात्म की नीव सदाचार और कर्तव्य पालन पर आधारित है तो उन्नति तीव्र गति से होती है।पूज्य गुरुदेव द्वारा बताये गए सदाचार और कर्तव्य पालन के मार्ग पर चलते हुए साधक का मन अत्यंत निर्मल होकर साधनारत हो जाता है ।"




सुर नर मुनि सब नावहिं सीसा।"



















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