














परम पूज्य पापाजी ने "अध्यात्म-मार्ग" एवम् "सद्गुरु का महत्व" बताते हुए कहा कि–

इस मार्ग की सबसे सरल बात यह है कि किसी भी एक गुण को आत्मसात करने से सभी ईश्वरीय गुण स्वतः चुम्बक की तरह खीचते चले आते है ।
इस तरह इन गुणों के साथ जीवन जीने से मनुष्य ईश्वर दर्शन का अधिकारी हो जाता है।
सन्त सद्गुरु एवम् ईश्वर इन सब में क्या अंतर है
इसको स्पष्ट करने के लिए सन्त कबीरदास जी का यह दोहा प्रस्तुत है –

बलिहारी गुरु आपकी गोविन्द दियो बताय।।"

अंत में मै यही कहूँगा कि प्रत्येक को सद्गुरु की शरण में जाकर मानव जीवन के लक्ष्य प्राप्ति का प्रयास समय रहते अवश्य करना चाहिए।यदि किसी के सद्गुरु या इष्टदेव नही है तो उन्हें जिसमे श्रद्धा विश्वास हो उनमे स्वयम को समर्पित कर जीवन के वास्तविक लक्ष्य की ओर अग्रसर होंने का प्रयत्न करना चाहिए।"
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