
















यह अपना यह पराया है इससे स्वयम को दूर रखना।सबके साथ ईमानदारी से व्यवहार करना।
सबकी आत्मा शुद्ध निर्मल और पवित्र होती है और वह सदैव सन्मार्ग की ओर प्रेरित करती है पर हम अपनी आत्मा की आवाज को सुनते ही नही है।
यदि हम सद्गुरु द्वारा बताये हुए अभ्यास को निरन्तरता से करे तो हम आत्म तत्व को समझ सकते है।
रामचरितमानस एवम् भगवद्गीता इन विशिष्ट एवम् पवित्र गर्न्थो में सन्तों की महिमा बताई गयी है।
अतः यदि अभी तक समय व्यर्थ हो गया तो कोई बात नही ,आज और अभी सब यह सङ्कल्प ले कि हम सब अपने गुरुदेव में (जिसके जो भी गुरु हो )पूर्ण समर्पित भाव से उनके मार्ग पर चलने का प्रयास अवश्य करेंगे।"


















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