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Tuesday, 4 July 2017

साधक/भक्त अत्यंत विनम्रता से अहंकार को त्यागकर शरणागत होकर गुरु के चरणों की सेवा करे

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🌻***~ॐ~***🌻
🌻*श्री गुरुवे नमः*🌻
🌻*-🌷-🌷-🌷*🌻
🌻"परम् पूज्य पापाजी ने सत्संग के दौरान बताया कि–
🌻"अध्यात्म मार्ग पर चलने के इच्छुक साधको /भक्तो को सर्वप्रथम किसी सद्गुरु की शरणागत होकर उनके चरणकमलों की अभिमान रहित होकर सेवा करने का सन्कल्प करना चाहिए। 
साधक/भक्त अत्यंत विनम्रता से अहंकार को त्यागकर शरणागत होकर गुरु के चरणों की सेवा करे।
यहाँ यह स्पष्ट करना चाहता हूँ कि चरणों की सेवा से तात्पर्य गुरुदेव के बताये हुए मार्ग पर चलना,उनके उपदेशो और आदर्शो को आत्मसात् करना है।
भगवद्गीता में भगवान कृष्ण ने भी अर्जुन से कहा कि "तू तत्वदर्शी महापुरुष के पास जाकर भली प्रकार प्रणत होकर अहंकार त्यागकर ,शरण होकर सेवा करके निष्कपट भाव से प्रश्न करके उस तत्व को जान।"अर्थात रामायण और गीता दोनों में सद्गुरु के महत्व को बताया गया है।
अतः गुरुदेव के आदर्शो एवम् उपदेशो को जैसे सत्य अहिंसा,दया,करुणा,पवित्रता, सदाचार ,परोपकार एवम् सबका सम्मान करना तथा सबमे ईश्वर का रूप देखना आदि है उन्हें अपनाया जाय।बार बार उनका मनन और चिंतन किया जाये जिससे ईश्वरीय गुण हम सबके रोम रोम व्याप्त हो सके।"🌻
🌻*🌷परम् पूज्य गुरुदेव सब पर कृपा करे।🌷*🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻(क्रमशः)🌻🌻🌻🌻🌻

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