
















किसी के व्यवहार से प्रभावित हुए बिना सबके साथ यथोचित व्यवहार करना चाहिए।
ऐसा नही होना चाहिए कि मन में कुछ और हो और बाहर से कुछ और व्यवहार।
साधक का मन निर्मल होना चाहिए।छल कपट से स्वयम को दूर रखने का प्रयास करना चाहिए।
अपने इष्टदेव/गुरुदेव पर पूर्ण श्रद्धा एवम् विश्वास रखना चाहिए।
जैसा कि भगवदगीता में भी भगवान ने अर्जुन से कहा है -




















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