🌻"परम् पूज्य पापाजी सदैव अपने परम् पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी महाराज के ध्यान में लीन रहते हुए साधना करते रहते।
प्रायः रामचरितमानस का पाठ कराते तो उसमे भगवान राम के रूप में अपने पूज्य गुरुदेव (श्री भवानी शंकर जी) श्री चच्चा जी महाराज एवम् उनके गुरुदेव श्री लालाजी महाराज जिनका नाम ही श्री रामचन्द्र जी था ,उन्ही के रूप में देखते और उन्ही के ध्यान में रामायण का पाठ कराते।
साथ ही यह भी बताते कि यदि नाम को ही देखो तो एक रामजी है दूसरे शंकरजी।दोनों हो एक दूसरे में समर्पित है।
जैसाकि रामचरितमानस कहा भी है--
🌻"औरउ एक गुपुत मत,
सबहि कहहुँ कर जोरि।
संकर भजन बिना नर ,
भगति न पावइ मोरि।।
🌻अर्थात भगवान ने स्वयम कहा है कि एक गुप्त मत है जिसे मै हाथ जोड़कर सबसे कहता हूँ कि शंकर जी के भजन बिना मनुष्य मेरी भक्ति नही पाता।
🌻"अतः हम सबको अपने गुरुदेवो में पूर्ण समर्पित भाव से भक्ति करनी है।भक्त का स्वभाव सरल हो,मन में कुटिलता न हो ,एवम् सबके प्रति सम्मान का भाव हो।अपने गुरुदेव के चरणों में अनन्य प्रेम हो तो सद्गुरु की कृपा से बेडा पार हो सकता है।"
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