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Saturday, 1 July 2017

न चक्रों को बेधने की जरूरत है,न अनाहत शब्दों में अपने को अटकाने की जरूरत है

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🌻***~ॐ~***🌻
🌻*श्री गुरुवे नमः*🌻
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🌻"परम् पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी महाराज सूफी सन्त थे।सूफी सन्त की आधारशिला ही प्रेम है।जिसके अन्तःकरण में प्रेम भक्ति का अमृत कलश छलकता है वही साक्षात् ईश्वर विराजमान है।दूसरे शब्दों में निष्काम प्रेम ही भक्ति है।
यहाँ–
🌻"न चक्रों को बेधने की जरूरत है,न अनाहत शब्दोंमें अपने को अटकाने की जरूरत है।गुरुदेव से अपना प्रेम सम्बन्ध दृढ करो।उनसे शक्ति खींचो और शक्ति द्वारा हृदय के मल व् आवरण को नष्ट कर डालो।
साधक का काम केवल शक्ति खीचना और उसे अपने अंदर भरना है।बाकी काम वह शक्ति स्वयम करवाएगी।
जिस दिन साधक मल और आवरण दूर कर अपने को निर्मल बनाएगा उसी दिन दर्शन का अधिकारी हो जायेगा।उसे दर्शन हो जायेंगे।"🌻
🌻*🌷परम् पूज्य गुरुदेव सब पर कृपा करे।🌷*🌻
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻(क्रमशः)🌻🌻🌻🌻🌻🌻

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