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Wednesday, 5 July 2017

इन्द्रियों का निग्रह,शील,बहुत से कार्यो से वैराग्य और निरन्तर सद्गुरु द्वारा बताये गए मार्ग पर चलने के लिए संकल्पित होना

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🌻***~ॐ~***🌻
🌻*श्री गुरुवे नमः*🌻
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🌻"परम् पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी के बताये हुए मार्ग के बारे में बताते हुए पूज्य पापाजी ने साधक के लिए कुछ और भी ध्यान देने योग्य बाते बताई ,जिनमे–
🌻"इन्द्रियों का निग्रह,शील,बहुत से कार्यो से वैराग्य और निरन्तर सद्गुरु द्वारा बताये गए मार्ग पर चलने के लिए संकल्पित होना।यहाँ पर कहने का तात्पर्य यह है कि मन सहित सभी इन्द्रियों का रुख ईश्वर की तरफ मोड़ कर उसमे आनन्द लेने में लगाने के लिए प्रयासरत रहना ।
सदाचार का पालन करना और बहुत से कर्मो से वैराग्य ।
अब प्रश्न यह उठेगा कि ऐसे कौन से कर्म है जिनसे वैराग्य हो तो इस सम्बन्ध में परम् पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी महाराज ने अपने अमृत वचन में स्पष्ट रूप से कहा है-
🌻"जिस कार्य के करने में भय,शंका और लज्जा का अनुभव न हो उस कार्य के करने से आत्मोन्नति और सदाचार की प्राप्ति होती है जिस काम के करने से भय,शंका और लज्जा का अनुभव हो उससे अधर्म की वृद्धि होकर आत्मबल नष्ट हो जाता है और मनुष्य दुराचारी तथा पापी होकर अधर्म को प्राप्त होता है।
अतः प्रत्येक साधक को प्रतिदिन आत्मनिरीक्षण एवम् आत्मपरिष्कार करते रहना चाहिए।
🌻*🌷परम् पूज्य गुरुदेव सब पर कृपा करे।🌷*🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻(क्रमशः)🌻🌻🌻🌻🌻🌻

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