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🌻परम् पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी महाराज द्वारा चयनित "सत पंच चौपाई" की श्रृंखला आज से प्रस्तुत है।परम् पूज्य पापाजी ने कुछ सारगर्भित सम्पुट भी बताये जिसे प्रारम्भ में तीन बार पढ़ कर "सत पंच चौपाई"प् रारम्भ कर के प्रत्येक कांड के प्रारम्भ में भी तीन बार करे एवम् समाप्ति भी तीन बार सम्पुट पढ़ कर करे।
सम्पुट
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1–मन्त्र महामणि विषय व्याल के,मेटत कठिन कुअंक भाल के।
–यह गुन साधन ते नहि होई,तुम्हरी कृपा पाय कोइ कोई।
2–सन्मुख होइ जीव मोहि जबहि,जन्म कोटि अघ नासहि तबही।
3–मम दरसन फल परम् अनूपा,जीव पाय निज सहज सरूपा।
(ऊपर तीन सम्पुट दिए गए है।उनमे से कोई एक सम्पुट करना है)
🌻"सत पंच चौपाई"
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सम्पुट


1–मन्त्र महामणि विषय व्याल के,मेटत कठिन कुअंक भाल के।
–यह गुन साधन ते नहि होई,तुम्हरी कृपा पाय कोइ कोई।
2–सन्मुख होइ जीव मोहि जबहि,जन्म कोटि अघ नासहि तबही।
3–मम दरसन फल परम् अनूपा,जीव पाय निज सहज सरूपा।
(ऊपर तीन सम्पुट दिए गए है।उनमे से कोई एक सम्पुट करना है)




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"भवानी शंकरौ वन्दे श्रद्धा विश्वास रूपिणौ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धा: स्वान्तः स्थमीश्वरम।।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धा: स्वान्तः स्थमीश्वरम।।
"श्रद्धा और विश्वास के स्वरूप श्री पार्वतीजी और श्री शंकरजी की मै वन्दना करता हूँ,जिनके बिना सिद्ध जन अपने अन्तःकरण में स्थित ईश्वर को नही देख सकते।
"वन्दे बोधमयम नित्यं गुरुं शंकर रुपिणम।
यमाश्रितोहि वक्रोअपि चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते।।
यमाश्रितोहि वक्रोअपि चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते।।
"ज्ञानमय,नित्य,शंकर रूपी गुरु की मै वन्दना करता हूँ,जिनके आश्रित होने से ही टेढ़ा चन्द्रमा भी सर्वत्र वन्दित होता है।"
(क्रमशः)
(क्रमशः)
















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