🌻"नाम जपत प्रभु कीन्ह प्रसादू,
भगत सिरोमनि भे प्रह्लादू।
ध्रुव सगलानि जपेऊँ हरि नाउँ,
पायउ अचल अनूपम ठाऊँ।
🌻"नाम के जपने से प्रभु ने कृपा की,जिससे प्रह्लाद भक्त शिरोमणि हो गए।ध्रुवजी ने ग्लानि से (विमाता के वचनो से दुखी होकर सकाम भाव से) हरिनाम को जपा और उसके प्रताप सेअचल अनुपम स्थान (ध्रुव लोक ) प्राप्त किया।"
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