🌻"सत पंच चौपाई"
🌻 के अयोध्याकांड की अगली प्रस्तुति–
🌻"नीति प्रीति परमार्थ स्वारथ,
कोउ न राम सम जान जथारथ।
देउ देवतरु सरिस सुभाऊ,
सन्मुख बिमुख न काहुहि काऊ।।
🌻"(मुनि वसिष्ठ जी कहते है कि)नीति,प्रेम,परमार्थ और स्वार्थ को श्री रामजी के समान यथार्थ (तत्वसे) कोईं नही जानता।(आगे भरत जी श्री रामचन्द्र जी के भक्तवत्सल स्वभाव का वर्णन करते हुए कहते है)हे देव! आपका स्वभाव कल्पवृक्ष के समान है;वह न कभी किसी के सम्मुख (अनुकूल) न विमुख (प्रतिकूल)।(अर्थात उस वृक्ष को पहचान कर जो उनके पास जाये तो उसकी छाया ही सारी चिंताओं का नाश करने वाली है और सभी को मनचाही वस्तु मिलती है)।"
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🌻"परम् पूज्य गुरुदेव की शरण में जाते ही उनके भक्तो की समस्त चिंताए समाप्त हो जाती है।वे हर सम्भव अपने भक्त का कल्याण करते है।"
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