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परम् पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी महाराज के भक्त श्री भगवती शरण दास,जिन्हें परम् पूज्य पापाजी कल्लू भाईसाहब कहा करते थे तथा अपने बड़े भाई की तरह सम्मानित करते थे,उनका संस्मरण उन्ही के शब्दों में प्रस्तुत है-

"गुरु समर्थ सिर पर खड़े सोच तोहि का दास।
ऋद्धि सिद्धि सेवा करैं,मुक्ति न छाडे पास।।"
मैने एक भी पैसा नही जोड़ा था।चच्चा जी ने पूछा कल्लू तुमने कितना पैसा जोड़ा है।मै चुपचाप श्री अम्मा जी के पास खिसक गया।हमे कातर अवस्था में देख अम्मा जी समझ गयी।उन्होंने कहा कल्लू तो आपकी और हमारी ओर ही देखता है किसी ओर देखता ही नही।अम्माजी महारानी ने मेरे सिर पर हाथ फेरा और कहा जाओ चिंता मुक्त होकर रहो।सब हो जायेगा।इसके बाद चच्चा जी महाराज ने विवाह का सारा व्यय स्वयम किया।अम्माजी महारानी ने अपने विवाह का एक आभूषण चढ़ावे में बहू के लिए भेजा।यह श्री चच्चा जी महाराज एवम् परम् पूजनीया अम्माजी महारानी की भक्तवत्सलता है।"


















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