














परम् पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी महाराज ने अपने अमृत वचन में कहा है कि-

यह गलत है क्योकि बुढ़ापे में इन्द्रिया इस कदर कमजोर हो जाती है कि वे मन के कहने के मुताबिक काम नही करती।दूसरे बुढ़ापे में गृहस्थ आश्रम का पूरा बोझ पड़ जाता है जिसकी वजह से भजन वगैरह नही हो पाता।एक सत्संगी भाई ने कहा कि वानप्रस्थ आश्रम क्यों बनाया गया है ताकि लोग गृहस्थ आश्रम से छुट्टी पाकर वानप्रस्थ में जावे।इस सम्बन्ध में पूज्य गुरुदेव ने कहा कि "गृहस्थी छोड़कर वानप्रस्थ आश्रम में जाने से कही अच्छा है कि गृहस्थ आश्रम में रहते हुए ही वानप्रस्थ को ग्रहण कर ले।वानप्रस्थ का मतलब है कि त्याग करे।त्याग का पहलू यह अच्छा है कि गृहस्थ आश्रम रहते हुए त्याग करे।यह साधना इस तरह हो सकती है कि यह ख्याल कर लिया जाये न तो ये हमारे लड़के है न यह हमारी स्त्री है ।मगर ईश्वर का हुक्म है कि हम इन सबकी सेवा ठीक ठीक करे और हम इनसे अलग बने रहे।ऐसा न हो इनकी सेवा में कुछ कमी हो जाये।"

















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