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परम् पूज्य पापाजी से सत्संग के दौरान एक भक्त ने प्रश्न किया-
1– साधना क्या है?
2 – इसका उद्देश्य क्या है?
इसका उत्तर देते हुए जो कुछ भी पूज्य पापाजी ने बताया वह उन्ही के शब्दों में प्रस्तुत है-
"साधना का उद्देश्य मन की चंचलता को रोककर उसे एकाग्र करना और चित्तवृत्तियों का निरोध करना है।साधक जिस समय अध्यात्म मार्ग पर चलने का निश्चय करता है उसी समय उसे समर्थ सदगुरु की शरणागत हो जाना चाहिए।गुरु ही साधक को इस मार्ग की सही दिशा दिखा सकते है।साधक के अंदर उस परम तत्व को जानने की व्याकुलता होनी चाहिए।साधना जमीन के नीचे बिछे हुए उस विद्युत् तार के समान है जो बाहर से दिखाई नही पड़ती किन्तु पावर हॉउस अर्थात परम् चेतना से जब उसका सम्बन्ध जुड़ जाता है तो वह सम्पूर्ण अंधकार को नष्ट कर देती है और उससे उपलब्ध प्रकाश को बाटना उसका सहज स्वभाव हो जाता है।मन के अंदर व्याप्त विकारो को दूर कर असहजता से सहजता की ओर जाना ही साधना के मार्ग पर कदम रखना है।इस मार्ग पर स्थायी उन्नति के लिए ही बार बार सद्गुरु की शरणागत होने के लिए कहा जाता है।अतः जिनमे श्रद्धा एवम् विश्वास हो और मन को शांति मिले,ऐसे सद्गुरु की शरणागत समय रहते हो जाना चाहिए।"


















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