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Thursday, 8 December 2016

(भाग २/३) - "श्री गुरु पद रज महिमा"

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🌻***~ॐ~***🌻
🌻*श्री गुरुवे नमः*🌻
🌻*-🌷-🌷-🌷-*🌻
"श्री गुरु पद रज महिमा" की अगली प्रस्तुति-
🌻"सद्गुरु की पद रज विमल-अंजन सुखद अमोल।
भाव सींक से आंजकर-अलख लखै दृग खोल। ।
🌻"गुरु पद पंकज छुअत ही मन अलि जाता भूल।
बन्धन लगता सुखद अति मुक्ति विचारी धूल।।
🌻अर्थ-सद्गुरु के चरण कमलो की धूल अंजन के समान सुखद है।यदि भाव पुष्ट है तो वे नेत्रो को दिव्य दृष्टि प्रदान कर देते है।
🌻अर्थ-सद्गुरु के चरणों का स्पर्श करते ही मन रूपी भँवरा सब कुछ भूल के सद्गुरु से स्वयम के बन्धन का सुखद अनुभव करने लगता है,फिर उसे मुक्ति की भी इच्छा नही रहती।
🌻🌻🌻🌻🌻🌻(शेष प्रस्तुति कल)🌻🌻🌻🌻
🌻*🌷परम् पूज्य गुरुदेव सब पर कृपा करे।🌷*🌻
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻(क्रमशः)🌻🌻🌻🌻

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