














परम् पूज्य पापाजी ने सत्संग के पश्चात आध्यात्मिक चर्चा के दौरान बताया कि-

पूज्य चच्चा जी महाराज नित्य प्रति की साधना पर विशेष जोर दिया करते थे।अभ्यास साधन का सार ईश्वर दर्शन का ज्ञान ही नही अपितु सदाचार भी है।यदि मनुष्य का आचरण ठीक नही हुआ तो उसकी समस्त साधना व्यर्थ हो जायेगी। अभ्यास का अर्थ किसी चीज को स्वतः में पूर्ण रूप से उतारना है एवम् नियमित रूप से अभ्यास साधना करनी है।पूज्य चच्चा जी ने अपने अमृत वचन में कहा है कि """प्रत्येक साधक को आत्मोन्नति तथा ईश्वरभक्ति के साधन का रोजाना का हिसाब उसी तरह रखना चाहिये कि जिस तरह नित्यप्रति सरकारी खजाने का हिसाब खजांची रखता है।"""अतः हम सबको जो इस मार्ग पर चल रहे है उन्हें नित्यप्रति अभ्यास करते रहना चाहिए।"


















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