(भाग -२/२) - परम् पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी महाराज की संक्षिप्त आत्मकथा के अंश
🌻🌻🌻🌻🌻🌻 🌻***~ॐ~***🌻 🌻*श्री गुरुवे नमः*🌻 🌻*-🌷-🌷-🌷-*🌻 परम् पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी महाराज की "संक्षिप्त- आत्मकथा"के आगे का अंश प्रस्तुत है - 🌻"सद्गुरु की प्राप्ति बिना तीव्र उत्कंठा तथा हृदय की तड़प के कदापि सम्भव नही।संसार में अब भी सद्गुरुओं की कमी नही है परन्तु उनके चाहने वाले सौ में नही ,हजारो में नही लाखो में से कोई एक होते है।यदि किसी प्रकार सद्गुरु मिल भी जाये,तो मनुष्य बिना अधिकार के उनको पहचान भी नही सकता।यदि किसी के कहने सुनने से वह सद्गुरु की शरणागत प्राप्त भी कर लेता है तो पात्र न होने के कारण वह हृदय का सम्बन्ध नही बना पाता।अब भी जहाँ सत्संग आश्रम है वहाँ पर शिष्यगण बड़ी तादाद में कारण व अकारणवश पहुँचते है परन्तु अपनी मनमानी इच्छाओ की पूर्ति न होने पर उनको न विश्वास होता हैं न उनकी श्रद्धा होती है।सद्गुरु एक ऐसा तत्व है कि यदि आसानी से मिल भी जाये तो भी मन नही ठहरता है,जैसाकि कहा है- 🌻"मोल नही अनमोल है,बिन मोलहि मिल जाय। तुलसी ऐसी वस्तु पर ग्राहक नहि ठहराय।।"🌻 🌻🌷*परम् पूज्य गुरुदेव कृपा करे।*🌷🌻 🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻(क्रमशः)🌻🌻🌻🌻🌻🌻
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