














परम् पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी महाराज के अनन्य भक्त श्री रामस्वरूप खरे,जी ,जिनकी पूज्य गुरुदेव में अटूट निष्ठा एवम् समर्पण है,ने परम् पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी की महिमा का वर्णन करते हुए अपने हृदय के भावपूर्ण उदगार के रूप में अनेक रचनाये की।उन्ही रचनाओ में "पूजा के फूल"नामक पुस्तक की भी रचना की।उस पुस्तक से "श्री गुरु पद रज महिमा" की पंक्तिया प्रस्तुत है--

सुमिरि सुमिरि नरतरहि भव-होय तुरत कल्यान।।
जीवन नौका क्षत विक्षत आन पड़ी मंझधार।
पार करहु तो पार है केवल कृपा अधार।।
पार करहु तो पार है केवल कृपा अधार।।
युगल चरण अरविन्द का जोजन करते ध्यान।
रिद्धि सिद्धि पीछे फिरे जाने सकल जहान।।
रिद्धि सिद्धि पीछे फिरे जाने सकल जहान।।
बाँह पकरि ममनाथ अब जाना कही न भूल।
दीन अकिंचन हीन मै तुम भव बारिधि कूल।।
दीन अकिंचन हीन मै तुम भव बारिधि कूल।।





























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