


















जबकि हमारे गुरुदेव हर पल हमे सुरक्षा कवच के दायरे में रखते है।हमने गुरु चरणों में अपनी श्रद्धा विश्वास एवम् निष्ठा का जो दीपक जलाया है उसे अविश्वास की आँधी से बचाते हुए अभ्यास और साधना की नियमितता एवम् निरन्तरता रूपी घी से प्रज्जवलित रखना है।
मन अत्यंत चंचल है वह प्रारम्भ में बहुत उत्पात मचाता है।किन्तु इस मन का एक गुण यह भी है कि वह जिसमे आनन्द लेने लगता है उसमे उच्चतम शिखर तक पहुँचा देता है।अतः हमे इसका रुख अध्यात्म की ओर मोड़ना है ततपश्चात अभ्यास की निरन्तरता एवम् गुरुदेव की कृपा से वह शीघ्र नियंत्रित हो जाता है।..........(क्रमशः)"



















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