
















गृहस्थ आश्रम में रहते हुए एक गृहस्थ के सभी कर्तव्यों का पालन करते हुए उनका जीवन कमल के पत्ते के समान निर्लिप्त था।
वह सर्वशक्तिमान होते हुए भी कभी चमत्कार दिखाने में विश्वास नही करते थे,परन्तु अपने भक्तो के कष्टो को दूर करने के लिए वे चमत्कार की हर सीमा पार कर जाते थे किन्तु उसका श्रेय किसी अन्य को दे दिया करते थे।दयालु एवम् कृपालु स्वभाव वाले पूज्य गुरुदेव अपनी कृपा से सदैव सबके कल्याण में लगे रहते।
अतः हम सबका यह कर्तव्य है कि हम स्वयम के कल्याण के लिए उनके बताये हुए मार्ग का अनुसरण करे।"


















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