
















गुरु द्वारा इस साधना का अभ्यास करते रहने से व् गुरु कृपा से मन नियंत्रित होने लगता है।मन बहिर्मुखी से अंतर्मुखी होने लगता है।
गुरु का इष्ट ही सर्वोत्तम इष्ट है।गुरु प्रकाश पुंज है।उनका ध्यान करने से आत्म प्रकाश जाग्रत होने लगता है तथा साधक अपने निज स्वरूप को पहचान कर उसी में स्थित रहने लगता है।


















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