


















जैसा कि तुलसीदास जी ने लिखा है
"कोउ न काहू कर सुख दुःख कर दाता।
निज कृत कर्म भोग सब भ्राता।
निज कृत कर्म भोग सब भ्राता।
तुलसीदास जी की इस चौपाई ने संसार की सम्पूर्ण स्थिति स्पष्ट कर दी है।हम अपने दुखो और दोषो के लिए दूसरो को उत्तरदायी ठहराते है यह उचित नही है।
अतः हमारा प्रयास होना चाहिए कि इस जन्म में हम सद्गुरु की शरणागत होकर ऐसा जीवन जिए कि कर्मबन्धन से मुक्त रहे।अब तक जो जैसा हो गया सो हो गया।
आज से ही हम सुधार की प्रक्रिया प्रारम्भ करे।अपना प्रत्येक क्षण अपने गुरुदेव के ध्यान में स्थित रहते हुए कर्म करे।जिससे हम निरन्तर उनके संरक्षण में रहेंगे और उनसे connection जुड़ा रहेगा।......................(क्रमशः)"
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अतः हमारा प्रयास होना चाहिए कि इस जन्म में हम सद्गुरु की शरणागत होकर ऐसा जीवन जिए कि कर्मबन्धन से मुक्त रहे।अब तक जो जैसा हो गया सो हो गया।
आज से ही हम सुधार की प्रक्रिया प्रारम्भ करे।अपना प्रत्येक क्षण अपने गुरुदेव के ध्यान में स्थित रहते हुए कर्म करे।जिससे हम निरन्तर उनके संरक्षण में रहेंगे और उनसे connection जुड़ा रहेगा।......................(क्रमशः)"



















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