
















इससे उसके जीवन में स्वभावत: उद्वेग,अशांति भय,क्रोध आदि के अवसर आते है और उसे जीवन में मानसिक अशांति का अनुभव करना पड़ता है।ऐसे मनुष्य को अपने कष्टो के निवारण के लिए मन तथा आत्मा की शांति के लिए ईश्वर का आश्रय ग्रहण करना पड़ता है।



जब मनुष्य के अंदर तीव्र उत्कण्ठा एवम् लगन होती है तो सद्गुरु मिलने में देर नही लगती।यही भाव उसे सद्गुरु की शरण में ले जाता है।
सद्गुरु की कृपा से ,उनके बताये हुए उपदेशो का पालन करने से उसको ऐसे साधन प्राप्त हो जाते है जिनका मन वचन और कर्म से पालन करने पर उसकी उनमे श्रद्धा एवम् विश्वास बढ़ने लगता है और साधना की ओर अग्रसर होकर परमशक्ति का अनुभव करने लगता है कि संसार में जो कुछ भी हो रहा है वह प्रभु की प्रेरणा एवम् इच्छा का फल है।
अतः वे जो कुछ भी करते है उसका अंतिम परिणाम शुभ ही होता है चाहे तत्काल वह इसे न समझ सके।तब उसकी व्याकुलता और अशांति दूर होने लगती है।"


















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