















याभ्यां बिना न पश्यन्ति सिद्धा स्वान्तः स्थमीश्वरम।।
वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शंकर रूपिणम ।
यमाश्रितो हि वक्रोअपि चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते।।"
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यमाश्रितो हि वक्रोअपि चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते।।"



(श्री भवानी शंकर जी महाराज) की वन्दना करते है जो श्रद्धा और विश्वास के स्वरूप है।जिनकी कृपा के बिना अपने अन्तःकरण में स्थित ईश्वर को नही देखा जा सकता।ज्ञानमय नित्य शंकर रूपी गुरु की वन्दना करते है जिनके आश्रित होने पर टेढ़ा चन्द्रमा भी सर्वत्र वन्दित होता है।हे गुरुदेव आप कृपा के सागर हम सबको अपनी शरण में लीजिये।"
















