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फरमाया कि कॉन्ट्रैक्ट (contract) का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता ,इसको तो हटा देना चाहिए।
फिर सत्संगी भाई ने कहा कि संस्कार का शब्द वहां हो सकता है ।
फरमाया कि संस्कार का पता बात पुरुषार्थ के चलता है। इसके पहले पता नहीं चलता है क्योंकि जब कोई बात पूरा पुरुषार्थ करने के बाद होती है, तब लोग कहते हैं कि यह सब संस्कार का फल है या यह मेरे पूर्व जन्मों का फल है।
इससे पहले कोई भी नहीं कहता कि यह हमारे पूर्व जन्मों का फल है। जब कोई बात हो जाती है इसी के बाद तो आप कह सकेंगे कि यह हमारे संस्कार का फल है।"




















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