






















ऐसे लोग बहुत कम या विरले ही हुआ करते हैं जो ऐसा करते हैं। इससे यह भी मतलब निकलता है कि किसी संस्कार को टाला नहीं जा सकता है बल्कि उसके भोगने में फायदा है ।
और वह किसी न किसी तरह से भोगना ही पड़ेगा ।हां इतना जरूर हो सकता है संत महात्मा इसको बर्दाश्त करने की ताकत दे देते हैं ताकि वह आसानी से भोगे जा सके।"




















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