






















राजा ने अपने राज्य में इस बात की मुनादी करा दी कि मेरे राज्य में अब कोई घोड़ा अश्वमेध यज्ञ का ना आए।
जब इस तरह की मुनादी राज में कराई गई तो राजा के पास तमाम लोगों की शिकायत आई कि आपको ऐसा करना शोभा नहीं देता ।
राजा ने कोई परवाह नहीं की। मगर जब रानी को मालूम हुआ तो उसने राजा से कहा यह आप ने क्या किया।आपको ऐसा ना करना चाहिए।
राजा ने कहा अच्छी बात है घोड़ा राज्य में आया करे पर मैं उस पर सवारी नहीं करूंगा। एक दिन महाराज अपने महल से निकल रहे थे दरवाजे पर एक ब्राह्मण अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा लिए खड़ा था। उसने महाराज से कहा महाराज घोड़ा आपके लायक है ।वाकई में घोड़ा बड़ा अच्छा और सुंदर था। महाराज ने इसको खरीद लिया और अपने दिल में ख्याल किया इस पर सवारी ना करूंगा।
कुछ समय बाद शाम को महाराज टहल रहे थे। साइस घोड़े को पानी पिलाके लौट रहा था ।घोड़े ने महाराज को देखा तो वह हिनहिनाया और महाराज का जी उस पर सवारी करने को आया। राजा ने सोचा इस पर सवार होकर यही घूमूंगा पर घोड़ा दक्षिण दिशा की तरफ दौड़ा और काफी दूर निकल गया और वहां पर एक सरोवर के पास रुका ।वहां बहुत सुंदर अप्सरा को राजा ने देखा। वह अप्सरा इस बात पर राजा के साथ चलने को तैयार हुई कि आप मुझसे शादी कर ले राजा ने सोचा कि ठीक है मैं शादी कर लूंगा किंतु मन में सोचा अब मैं अश्वमेध यज्ञ नहीं करूंगा।"




















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