






















इसके वास्ते कहा कि लोगों को अव्वल तो यह कि गुरु को कोई चीज बनाकर ना माने बल्कि उसको भी एक जरूरी चीज के तौर पर माने।
जैसे कि हम लोगों को संसारिक काम के वास्ते धोबी मेहतर नाई पंडित की जरूरत पड़ती है।
उसी तरह से समझ लेना चाहिए कि ईश्वरीय मार्ग पर चलने के वास्ते गुरु की भी जरूरत है ।जब ईश्वरीय मार्ग बारे में कोई बात आवेगी तब हम उनसे इसके बारे में कंसल्ट करेंगे।
अगर आप दुनियावी काम में उन से सलाह ले कर फल की इच्छा रखेंगे तो आपका अविश्वास का हो जाना एक मामूली सी बात हो जाएगी ।
क्योंकि इसको हम नहीं जानते कि दुनियावी काम के हो जाने से इसमें हमारी भलाई है या बुराई ।इसको तो वही खुद समझ सकते हैं और जब आपने फल की इच्छा रखते हुए उन से सलाह ली और वह काम जैसा आप ने सोचा था ना हुआ तो आपको उनकी तरफ से अविश्वास पैदा हो जाएगा ।
अविश्वास के बारे में कहा कि यह अविश्वास गुरु से ही नहीं बल्कि ईश्वर से हो गया। और जितने भी उस से कनेक्ट है उन सब से हो गया। इसका फल बुरा होता है।"




















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