🌻"परम् पूज्य गुरुदेव श्री चच्चा जी महाराज के
🌻"दिव्य वचनो की श्रृंखला की –
🌻"पूज्य चच्चा जी ने कहानी समाप्त करते हुए कहा कि–
🌻"जिस दिन अश्वमेध यज्ञ होने वाला था उस दिन तमाम ब्राह्मण के लड़के आए और सब तैयारी होने लगी।
जब सब तैयारी हो गई तो लड़कों ने कहा कि अब राजा रानी को बुलाओ ।जब राजा रानी आए तो ब्राह्मण
के लड़के रानी की सुंदरता को देखकर मोहित हो गए।
राजा यह सब देखता रहा।मगर चुप रहा। अंत में जब ब्राह्मण के लड़के रानी को देख कर हंस पड़े तो राजा को बर्दाश्त ना हुआ और उसने उन लोगों से कहा तुम लोग चाण्डाल हो ब्राह्मण नहीं।
इस पर ब्राह्मण के लड़कों ने गुस्से में आकर राजा को शाप दे दिया कि तुम कोढ़ी हो जाओ ।राजा कोढ़ी हो गया।
इसके बाद राजा फिर से शुकदेव जी के पास गया और सब हाल बताया।
इस पर शुकदेव जी ने कहा कि मैंने पहले ही कहा था कि भावी बड़ी प्रबल होती है उसके सामने पुरुषार्थ वगैरह कुछ काम नहीं करता है।
मगर अब भी तुमको पुरुषार्थ का बल है तो करो ।मैं इससे छुटकारा पाने का उपाय तुमको बता देता हूं। तुम भगवत गीता को ध्यान के साथ शुरू से सुनो अगर तुम शुरू से आखिर तक ठीक तरह से सुन लोगे तो तुम्हारा कोढ़ ठीक हो जाएगा।
अगर तुम बीच मे सो गए तो तुम एकअंगसे कोढ़ी ही रह जाओगे। राजा ने निश्चय किया कि मैं बड़ी सावधानी के साथ भगवत गीता सुनूंगा।
सुनने के बाद आखरी स्कंध में उसे एकदम नींद आ गईऔर वह सो गया।तथा एक अंग से कोढ़ी ही रहा।
कहने का मतलब यह है वाकई में भावी बड़ी प्रबल होती है उसके आगे पुरुषार्थ वगैरह कुछ काम नहीं करता।"
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