🌻"परम् पूज्य पापाजी ने अपने अमृत वचन में कहा कि--
🌻"जीवन का प्रत्येक क्षण ईमानदारी से जियो,जिससे तुम्हारा पूरा जीवन ही पूजा और प्रार्थना बन जाये।"
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🌻"इसको विस्तार से बताते हुए पापाजी कहते थे अपने जीवन के सभी कर्तव्यों का पालन पूरी निष्ठा से करते हुए ,कर्मफल की आसक्ति को छोड़ देने से निष्काम कर्मयोग सिद्ध होता है।इस सम्बन्ध में उन्होंने एक कहानी सुनाई।यद्यपि यह कहानी सभी ने सुनी होगी फिर भी इस सन्दर्भ में प्रस्तुत है–
🌻"एक सन्यासी वन में तपस्या कर रहा था,तभी उसके सिर पर कुछ पत्तिया गिरी।एक कौवा और एक बगुला पेड़ पर लड़ रहे थे जिससे पत्तिया सन्यासी के ऊपर गिरी,उसने क्रोध में उन्हें देखा और एक ज्वाला सी निकली जिससे दोनों पक्षी जल कर मर गए।अपने में यह शक्ति देखकर सन्यासी बड़ा खुश हुआ।कुछ समय बाद वह एक गांव में भिक्षा मांगने गया और बोला माँ कुछ भिक्षा मिलेगी।भीतर से आवाज आई थोड़ी देर ठहरो।सन्यासी को बड़ा क्रोध आया तभी भीतर से फिर आवाज आई बेटा अपने को इतना बड़ा मत समझ ।यहाँ कोई कौवा व् बगुला नही है।यह सुनकर सन्यासी आश्चर्य चकित होकर प्रतीक्षा करने लगा।एक स्त्री निकली ,सन्यासी उनके चरणों में गिर कर पूछने लगा।माँ आपको यह सब कैसे मालूम हुआ।उस स्त्री ने उत्तर दिया बेटा मैं न तो योग जानती हूँ और न तपस्या।मेरे पति बीमार है मै उनकी सेवा में लगी थी इसलिए तुम्हे रोका था।जीवन भर मै यही प्रयत्न करती रही हूँ कि सबके प्रति अपना कर्तव्य निभाती रहूँ,चाहे माता पिता के प्रति हो या किसी के भी प्रति हो।यही मेरा योगाभ्यास है।अपना कर्तव्य करने से ही मेरे दिव्य चक्षु खुल गए जिससे मैने तुम्हारे विचारो को जान लिया।यदि तुम और भी तत्व की बात जानना चाहते हो एक कसाई के पास जाओ।तमाम सन्कल्प विकल्प के बावजूद वह कसाई के पास गया।कसाई ने उसको देखते ही पूछा क्या उस स्त्री ने आपको भेजा है।आप बैठ जाइये,मै अपना काम समाप्त कर लूँ।कसाई को माँस काटते देख सन्यासी के मन में आया इस कसाई से मुझे क्या शिक्षा मिल सकती हैऔर मन उसके कार्य को देखकर घृणा भी हुई।जब कसाई अपना काम कर चुका तो बोला चलिये महाराज ।घर पहुँच कर उसने उस सन्यासी को बैठने के लिए आसन दिया।फिर अपने वृद्ध माता पिता को स्नान कराकर भोजन कराया और उन्हें प्रसन्न करने के लिए जो कर सकता था किया।फिर उसने सन्यासी से वार्तालाप कर उसे उपदेश दिए।सन्यासी को बड़ा आश्चर्य हुआ उसने कहा कि आप इतने ज्ञानी होकर इतना निन्दित और कुत्सित कार्य क्यों करते है?कसाई ने उत्तर दिया,कोई भी कर्तव्य निन्दित और अपवित्र नही है।मै जन्म से इस परिस्थिति में हूँ।मै कर्तव्य के नाते इसे उत्तम रूप से करता हूँ इसमें मेरी आसक्ति नही है।मै गृहस्थ के नाते अपने परिवार वालो और माता पिता को प्रसन्न रखने के लिए जो कुछ मुझसे बन पड़ता है वह सब करता हूँ।न मै योग जानता हूँ न कभी तपस्या की।अनासक्त भाव सेअपना कर्तव्य पूरी निष्ठा से करते हुए ही मुझे यह सब ज्ञान प्राप्त हुआ।"
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पूज्य पापाजी ने यह कहानी सुनाते हुए आगे कहा कि–
"साधन और सिद्धि को एक समझो"।
जब कोई कर्म करो तब अन्य बात पर विचार मत करो।उसे एक उपासना की तरह करो।जीवन में कर्मफल में बिना आसक्ति रखे कर्तव्य उचित रूप से किया जाये तो वह निष्काम कर्म हो जाता है जिससे मनुष्य बन्धन में नही फसता।"
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